मृदा स्वास्थ्य(Soil Health)

मृदा स्वास्थ्य का अर्थ मृदा के उन सभी प्रभावों से है जिनके आधार पर फसल का उत्पादन अच्छा हो सके और जिसमें पौधों की वृद्धि एवं विकास के सभी गुण उपस्थित हो तथा जीवों की संख्या और उनकी क्रियाशीलता आदर्श स्तर की हो। इन्ही वांछित गुणों के आधार पर मृदा स्वास्थ्य को निर्धारित करते हैं।

भारत अनेकता में एकता वाला देश है, जहां अलग-अलग तरह की मिट्टी में अलग-अलग तरह की फसलें (Soil based Farming) उगाई जाती है. यहां की मिट्टी की तुलना दुनिया के किसी देश की मिट्टी से नहीं की जा सकती है, क्योंकि दूसरे देशों के मुकाबले भारत की मिट्टी ज्यादा उपजाऊ है. यहां के खेतों में मिट्टी में कार्बनिक  और अकार्बनिक पदार्थों  के साथ जैविक व खनिज पदार्थ भी पाये जाते हैं, लेकिन रासायनों के बढ़ते इस्तेमाल के कारण मिट्टी अपनी उपजाऊ क्षमता खोती जा रही है. इससे फसलों का उत्पादन प्रभावित हो ही रहा है

मृदा स्वास्थ्य बनाए रखने के उपाय-

दलहन की खेती को बढ़ावा (Promotion of Pulses Cultivation)
 किसानों को एक बाद एक लगातार पारंपरिक फसलों की खेती नहीं करनी चाहिये. इससे मिट्टी के की सारी शक्ति खत्म हो जाती है और अगली फसल का उत्पादन प्रभावित होता है. इस समस्या का उपाय दालों की खेती से कर सकते हैं.  दलहनी फसलों की खेती करके मिट्टी में जरूरी पोषण तत्वों की पूर्ति हो जाती है और मिट्टी को प्राकृतिक तरीके से ही उर्वरता मिल जाती है, इसलिये किसानों पारंपरिक फसलों के बाद अगले फसल चक्र में दलहनी फसल जरूर लगानी चाहिये. किसान चाहें तो दलहनी फसलों की अंतरवर्तीय या सह-फसल खेती भी कर सकते हैं.



हरी खाद और अजोला प्रयोग (Green Manure & Azolla)
भारत में कई किसान मिट्टी की सेहत को समझते हुये जैविक खेती ही करते हैं. ये किसान अलग से किसी उर्वरक या रसायनों का इस्तेमाल नहीं करते, बल्कि विभिन्न प्रकार की जैविक खाद और एंजाइम्स का प्रयोग करते हैं. इन साधनों में हरी खाद के रूप ढैंचा, बरसीम और सनई के साथ-साथ दलहनी फसलें उगा सकते हैं. बता दें कि इन फसलों की खेती के बाद खेत में पड़े इनके कचरे पर यूरिया डालकर जैविक खाद बनाई जाती है, जो मिट्टी में ही विघटित होकर  खेत को संजीवनी जैसी शक्ति देती है. किसान चाहें तो खेत में अजोला उगाकर खेत में ही डालने से मिट्टी की शक्ति को वापस लौटा सकते हैं.


खेत में लगायें कीटनाशक पौधे (Grow Pesticide plants in Farm Field)
रासायनिक कीटनाशक मिट्टी की सारी शक्ति सोख लेते हैं. ऐसे में खेत में ही कीटनाशक पौधे उगाना फायदे का सौदा साबित हो सकता है. कई ऐसे पौधे भी होते हैं, जिनसे जैविक कीटनाशक बनाये जाते हैं, इनमें नीम, कैटनिप और एग्रेटम शामिल है. इन पौधों को खेत में लगाने से कीड़ों की समस्या से काफी हद तक छुटकरा मिल सकता है. किसान चाहें तो नीम से बने कीटनाशकों का प्रयोग भी करते हैं, जिससे मिट्टी को काई नुकसान नहीं होता, बल्कि मिट्टी की शक्ति बढ़ाने के लिये नीम की पत्ती और खली का प्रयोग काफी समय से किया जाता है. 



समय-समय पर करवायें मिट्टी की जांच (Soil Test for Soil Health)
मिट्टी का स्वास्थ्य (Soil Heralth) बरकरार रखने के लिये मिट्टी की जरूरत के हिसाब से ही खाद-उर्वरकों (Manure & Fertilizer) का प्रयोग करना चाहिये, क्योंकि जरूरत से ज्यादा उर्वरक और पोषक तत्व मिट्टी की क्वालिटी को खराब कर देते हैं. ऐसी स्थिति में समय-समय पर खेत की मिट्टी की जांच (Soil Test)करवाना फायदे का सौदा साबित हो सकता है. बता दें कि मिट्टी की जांच के बाद मृदा जांच लैब (Soil Test Lab) किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड (Soil Health Card) देती हैं, जिनमें मिट्टी का प्रकार और मिट्टी की जरूरतों से लेकर कौन सी फसल मिट्टी में लगानी चाहिये जैसी सारी जानकारियां लिखी होती है. मृदा स्वास्थ्य कार्ड के हिसाब से खेती करके भी मिट्टी को सेहतमंद रख सकते हैं.

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