Profitable and Nutritious Lentil Farming (मसूर की खेती: लाभदायक और पौष्टिक फसल)

Lentils (Lens culinaris) are a valuable pulse crop grown in India during the Rabi season. Known for their high protein, fiber, and mineral content, they are a nutritious staple in Indian diets. Lentil farming can yield high profits for farmers, especially in major growing states like Uttar Pradesh, Madhya Pradesh, Bihar, and Rajasthan.

मसूर (लेंस क्यूलिनारिस) एक महत्वपूर्ण दलहनी फसल है, जो भारतीय भोजन का हिस्सा है और प्रोटीन का अच्छा स्रोत मानी जाती है। भारत में, खासकर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार और राजस्थान जैसे राज्यों में इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। इसके सेवन से शरीर को प्रोटीन, फाइबर, आयरन और अन्य मिनरल्स मिलते हैं, जो सेहत के लिए लाभदायक हैं। किसान इसकी खेती करके अपने मुनाफे में वृद्धि कर सकते हैं और उपज को अच्छी कीमत पर बेच सकते हैं।

जलवायु और मिट्टी:

मसूर की खेती ठंडे और शुष्क मौसम में बेहतर होती है। इसकी बुवाई के लिए 20-25 डिग्री सेल्सियस तापमान सबसे उपयुक्त होता है। उच्च तापमान और अत्यधिक वर्षा फसल के विकास पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं। मिट्टी के लिए दोमट या काली मिट्टी सबसे सही होती है, जिसमें जल निकासी अच्छी हो। पीएच मान 6-7 के बीच होना चाहिए, जिससे पौधों को पोषक तत्वों का सही रूप से अवशोषण मिल सके। मिट्टी की जाँच करके इसे बुवाई से पहले तैयार करना जरूरी होता है।

बुवाई का समय और विधि:

मसूर की बुवाई अक्टूबर के अंत से नवंबर के मध्य तक की जाती है। बुवाई से पहले बीज को 3-4 सेमी की गहराई पर बोना चाहिए, जिससे बीज सही ढंग से अंकुरित हो सके। प्रति एकड़ 25-30 किलोग्राम बीज का इस्तेमाल करना चाहिए। बीज को बोने से पहले राइजोबियम और पीएसबी कल्चर से उपचारित करें, जिससे पौधे को नाइट्रोजन और फॉस्फोरस जैसे पोषक तत्व बेहतर मिल सकें और उपज अधिक हो।

खाद और उर्वरक प्रबंधन:

मसूर की फसल में अधिक उर्वरकों की आवश्यकता नहीं होती। जैविक खाद का प्रयोग फसल के लिए फायदेमंद होता है। बुवाई के समय प्रति एकड़ 20-25 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40-50 किलोग्राम फॉस्फोरस, और 20 किलोग्राम पोटाश का उपयोग करें। इसके अलावा, समय-समय पर सूक्ष्म पोषक तत्वों का स्प्रे करें, ताकि पौधों में आवश्यक तत्वों की कमी न हो और फसल स्वस्थ बनी रहे।

सिंचाई और देखभाल:

मसूर की खेती में सिंचाई की जरूरत कम होती है। अधिक पानी से जड़ सड़ सकती है, जिससे फसल प्रभावित होती है। बुवाई के बाद हल्की सिंचाई करें और फूल आने से पहले एक बार सिंचाई करें। फसल के शुरुआती चरण में खरपतवार नियंत्रण महत्वपूर्ण है। जैविक पद्धतियों से जैसे हाथों से या यांत्रिक उपकरणों से खरपतवार निकालें ताकि पौधों को सही पोषक तत्व मिलते रहें।

कटाई और उत्पादन:

मसूर की फसल 100-110 दिनों में पकने के बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है। पौधे का निचला हिस्सा जब पीला होने लगे और पत्तियाँ झड़ने लगें तो कटाई का सही समय होता है। कटाई के बाद फसल को 2-3 दिनों तक धूप में सूखा कर अच्छे से भंडारण करें। प्रति एकड़ 8-10 क्विंटल की पैदावार प्राप्त की जा सकती है, जो देखभाल और पोषक तत्वों पर निर्भर करती है।

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लाभ:

मसूर की खेती से किसानों को अच्छा आर्थिक लाभ होता है। इसकी खेती मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने में सहायक होती है, क्योंकि यह मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाती है। मसूर की बढ़ती मांग के कारण इसकी बाजार में अच्छी कीमत मिलती है, जो किसानों के लिए एक लाभदायक फसल साबित होती है।

निष्कर्ष:

मसूर की खेती न केवल पोषण से भरपूर है, बल्कि यह मिट्टी की उर्वरता और किसानों की आर्थिक स्थिति को भी बेहतर बनाती है। मसूर की खेती में सही तकनीक और समय का पालन करके किसान लंबे समय तक मुनाफा कमा सकते हैं। यह फसल स्वास्थ्य और व्यवसाय, दोनों के लिए लाभकारी साबित होती है।

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Climate and Soil:

Lentils thrive in cool and dry climates, ideally at 20-25°C. Excessive rain or high temperatures can harm the crop. Loamy or black soil with good drainage and a pH level of 6-7 is best for optimal growth, so testing and preparation before sowing are important.

Sowing Time and Method:

Sowing is typically done between late October and mid-November. For effective growth, seeds should be sown at a depth of 3-4 cm, with 25-30 kg of seeds per acre. Pre-treat seeds with rhizobium and PSB cultures to enhance nutrient absorption, supporting healthy plants and high yields.

Fertilizer Management:

Lentil crops require limited fertilizers. For best results, apply 20-25 kg of nitrogen, 40-50 kg of phosphorus, and 20 kg of potash per acre. Regular micronutrient sprays can further support crop health and yield quality.

Irrigation and Care:

Lentils need minimal irrigation. Apply light watering after sowing and once before flowering. Weed control is crucial early on, so consider manual or mechanical methods to prevent weeds from competing with lentil plants for nutrients.

Harvesting and Production:

Lentils mature in about 100-110 days. When the lower stems turn yellow, it’s time to harvest. After cutting, dry the crop in the sun for 2-3 days to remove excess moisture for safe storage. Average yield can reach 8-10 quintals per acre, depending on care and nutrient management.

Benefits:

Lentil farming benefits farmers economically and improves soil fertility by increasing nitrogen levels. High demand ensures a good market price, making it a reliable and profitable crop choice.

Conclusion:

Lentils offer both nutritional value and economic potential, especially with the right practices and timing. With proper care, farmers can maximize their returns and support sustainable farming practices, benefitting both health and livelihood.

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