Pea Farming: Enhance Yield with Advanced Techniques and Proper Care (मटर की खेती: उन्नत तरीके और सही देखभाल से बढ़ाएं उत्पादन)

Pea (Pisum sativum) is one of the major legume crops in India, used both as a vegetable and a pulse. Peas are rich in protein, vitamins, and minerals, making them an essential part of the diet. Pea farming is mainly done in cool weather and can be a profitable crop for farmers. In this article, we will share important information related to pea farming, which can help improve your yield.

मटर (Pisum sativum) भारत में प्रमुख दलहनी फसलों में से एक है। इसका उपयोग सब्जी और दाल दोनों के रूप में किया जाता है। मटर में प्रोटीन, विटामिन, और खनिज तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं, जो इसे आहार के लिए महत्वपूर्ण बनाते हैं। मटर की खेती ठंडे मौसम में की जाती है और यह किसानों के लिए एक लाभकारी फसल साबित हो सकती है। इस लेख में हम मटर की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी साझा करेंगे, जिससे आप उत्पादन को बेहतर बना सकते हैं।

मटर की किस्में:

मटर की कई किस्में होती हैं, जो क्षेत्र और जलवायु के अनुसार उपयुक्त होती हैं। कुछ लोकप्रिय किस्में इस प्रकार हैं:

अर्ली बैज़र: जल्दी पकने वाली और कम समय में तैयार होने वाली किस्म।

अरकल: अच्छी गुणवत्ता की दाने वाली किस्म, जो मध्यम समय में पकती है।

पंत मटर 3: अधिक उत्पादन और रोग प्रतिरोधक क्षमता वाली किस्म।

आजाद पी 1: बड़े और स्वादिष्ट दानों के लिए प्रसिद्ध है।

मिट्टी और जलवायु:

मटर की खेती के लिए दोमट और बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है। मिट्टी का पीएच स्तर 6-7 के बीच होना चाहिए। मटर की फसल ठंडे और शुष्क मौसम को पसंद करती है। इसे अक्टूबर से नवम्बर के बीच लगाया जाता है, और फसल मार्च-अप्रैल तक तैयार हो जाती है।

खेत की तैयारी:

मटर की बुवाई के लिए खेत की अच्छी तरह से जुताई करना जरूरी है। 2-3 बार जुताई कर के मिट्टी को भुरभुरा कर लें। खेत को समतल करने के बाद कार्बनिक खाद या गोबर की खाद मिलाएं ताकि मिट्टी में पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ सके।

बीज की बुवाई:

मटर के बीज की बुवाई अक्टूबर से नवम्बर के बीच की जाती है। बुवाई से पहले बीजों को फफूंदनाशक दवा या जैविक उपचार से उपचारित करें, ताकि बीमारियों से बचा जा सके। बीज की मात्रा प्रति हेक्टेयर 70-80 किलोग्राम होनी चाहिए। पौधों के बीच की दूरी 30-45 सेंटीमीटर और कतारों के बीच की दूरी 15-20 सेंटीमीटर रखें।

सिंचाई:

मटर की फसल को सिंचाई की विशेष जरूरत नहीं होती, लेकिन मिट्टी में नमी बनाए रखना जरूरी है। बुवाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करें और फिर फसल के विकास के विभिन्न चरणों पर, जैसे फूल आने और दाने बनने के समय सिंचाई करें। ध्यान रखें कि जल भराव से बचें, क्योंकि इससे पौधों की जड़ें सड़ सकती हैं।

खाद और उर्वरक:

मटर की अच्छी उपज के लिए जैविक खाद का उपयोग बेहतर रहता है। बुवाई से पहले खेत में 8-10 टन गोबर की खाद डालें। रासायनिक उर्वरकों में, नाइट्रोजन (20-25 किग्रा/हेक्टेयर), फॉस्फोरस (40-50 किग्रा/हेक्टेयर) और पोटाश (40-50 किग्रा/हेक्टेयर) का उपयोग करें। फूल आने के समय नाइट्रोजन की एक हल्की खुराक दी जा सकती है।

खरपतवार नियंत्रण:

की खेती में खरपतवारों से बचाव करना बहुत जरूरी है, क्योंकि ये फसल से पोषक तत्वों को छीन लेते हैं। समय-समय पर निराई-गुड़ाई करें या जैविक और रासायनिक तरीकों से खरपतवारों का नियंत्रण करें।

रोग और कीट नियंत्रण:

मटर की फसल में कुछ सामान्य बीमारियाँ जैसे उकठा रोग, पत्ती झुलसा और चूर्णी फफूंद हो सकती हैं। इन्हें रोकने के लिए समय-समय पर फफूंदनाशक दवाओं का छिड़काव करें। कीटों में चित्तीदार भृंग और फलीछेदक प्रमुख होते हैं, जिनके लिए जैविक कीटनाशकों का उपयोग करें या खेती के सुरक्षित तरीकों को अपनाएं।

फसल की कटाई:

मटर की फसल जब पूरी तरह से पक जाए और दाने सख्त हो जाएं, तब उसकी कटाई की जाती है। मटर की कटाई हाथ से की जा सकती है। कटाई के बाद मटर को सुखाकर भंडारण के लिए तैयार करें।

उपज और भंडारण:

मटर की अच्छी देखभाल और सही तकनीक अपनाने पर 12-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त की जा सकती है। भंडारण के लिए मटर को ठंडे और सूखे स्थान पर रखें, ताकि वह लंबे समय तक सुरक्षित रह सके।

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निष्कर्ष:

मटर की खेती किसानों के लिए एक लाभदायक और पौष्टिक फसल है। उचित देखभाल, सही समय पर बुवाई, और उन्नत तकनीकों का उपयोग करके मटर की उपज को बढ़ाया जा सकता है। सही जानकारी और तकनीक अपनाकर किसान अपनी आय में बढ़ोतरी कर सकते हैं और बेहतर उत्पादन पा सकते हैं।

यह भी देखे -

Youtube video 📷- मटर की खेती

Varieties of Peas:

There are several varieties of peas that are suitable depending on the region and climate. Some popular varieties include:

Early Badger: A quick-maturing variety that is ready in a short time.

Arkel: Known for its quality grains and medium-maturing time.

Pant Matar 3: A high-yielding variety with good disease resistance.

Azad P1: Famous for its large and tasty grains.

Soil and Climate:

Pea farming is best suited to loamy and sandy loam soils. The ideal pH level of the soil should be between 6 and 7. Peas prefer cool and dry weather conditions. Sowing is done between October and November, and the crop is harvested by March-April.

Field Preparation:

Proper plowing of the field is essential for pea sowing. The field should be plowed 2-3 times to make the soil loose and well-drained. After leveling the field, add organic manure or compost to enhance the nutrient content in the soil.

Seed Sowing:

Pea seeds are sown from October to November. Before sowing, treat the seeds with fungicide or bio-treatment to prevent diseases. Use 70-80 kg of seeds per hectare. Maintain a spacing of 30-45 cm between plants and 15-20 cm between rows.

Irrigation:

Pea crops do not require frequent irrigation, but it is important to maintain soil moisture. Light irrigation should be done immediately after sowing, and later during critical growth stages like flowering and pod formation. Avoid waterlogging, as it can damage the roots.

Fertilizers and Manure:

For a good pea yield, it is beneficial to use organic fertilizers. Add 8-10 tons of compost to the field before sowing. In terms of chemical fertilizers, apply 20-25 kg of nitrogen, 40-50 kg of phosphorus, and 40-50 kg of potash per hectare. A light dose of nitrogen can also be applied at the flowering stage.

Weed Control:

Weed control is crucial in pea farming as weeds compete with the crop for nutrients. Regular weeding and hoeing should be done, or organic and chemical methods can be used to manage weeds.

Pest and Disease Management:

Pea crops are susceptible to diseases like wilt, leaf blight, and powdery mildew. Fungicide sprays can help control these diseases. Common pests include spotted beetles and pod borers, which can be managed using organic pesticides or safe farming practices.

Harvesting:

Peas are harvested when the pods are fully mature, and the seeds inside have hardened. The crop can be harvested manually. After harvesting, dry the peas properly for storage.

Yield and Storage:

With proper care and advanced techniques, a yield of 12-15 quintals per hectare can be achieved. For storage, keep the peas in a cool, dry place to ensure they remain safe for a long time.

Conclusion:

Pea farming is a profitable and nutritious crop for farmers. By following proper care, timely sowing, and advanced farming methods, the yield of peas can be significantly increased. With the right knowledge and techniques, farmers can enhance their income and ensure better production.

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