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Sem, also known as ‘Beans,’ is a significant leguminous crop that is not only rich in nutrition but also highly profitable for farmers. Grown across various regions in India, sem requires suitable climatic conditions and proper care. With the right techniques and timely attention, farmers can significantly increase their crop yield and boost profitability. In this article, we will cover all the essential information on sem farming, helping you achieve higher yields.
सेम, जिसे अंग्रेजी में ‘Beans’ कहा जाता है, एक प्रमुख फलियाँ वाली फसल है जो न केवल पोषण से भरपूर होती है, बल्कि किसानों के लिए आर्थिक रूप से भी फायदेमंद है। सेम की खेती भारत के विभिन्न क्षेत्रों में की जाती है और इसके लिए उपयुक्त जलवायु और देखभाल की आवश्यकता होती है। इस लेख में हम सेम की खेती से जुड़ी सभी जरूरी जानकारियाँ देंगे, जिससे आप अधिक उपज प्राप्त कर सकें।
सेम की खेती के लिए 15°C से 30°C के बीच का तापमान सबसे अच्छा होता है। इसे नमी वाली मिट्टी में अच्छे परिणाम मिलते हैं, लेकिन जलनिकासी का ध्यान रखना बहुत जरूरी है, क्योंकि जलजमाव से पौधे को नुकसान हो सकता है। बलुई दोमट मिट्टी (sandy loam soil) सेम की खेती के लिए सबसे अच्छी मानी जाती है। मिट्टी का pH स्तर 6.0 से 7.5 के बीच होना चाहिए।
उन्नत किस्मों का चयन अधिक उपज और बेहतर गुणवत्ता के लिए जरूरी है। कुछ लोकप्रिय सेम की किस्में इस प्रकार हैं:
पूसा रत्ना, पूसा समृद्धि, पूसा परवती, आर्का अनमोल, वीएल सेम 8|
ये किस्में बेहतर पैदावार के साथ रोग प्रतिरोधक क्षमता भी प्रदान करती हैं।
समय: सेम की बुवाई मानसून के शुरुआत में यानी जून-जुलाई के महीनों में की जाती है। कुछ किस्मों को अक्टूबर-नवंबर में भी उगाया जा सकता है।
विधि: बुवाई के लिए खेत की तैयारी बेहद जरूरी है। खेत को अच्छे से जुताई करें और समतल करें। बीजों को 2-3 सेंटीमीटर गहराई में बोना चाहिए, और पंक्तियों के बीच 45 से 60 सेंटीमीटर की दूरी होनी चाहिए।
अच्छी पैदावार के लिए मिट्टी में उचित मात्रा में उर्वरक डालना जरूरी है। जैविक खाद के साथ-साथ नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश का सही अनुपात में प्रयोग करना चाहिए। सेम की खेती में 20-30 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50-60 किलोग्राम फास्फोरस और 30-40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर देना फायदेमंद होता है।
सेम की खेती के लिए संतुलित सिंचाई की जरूरत होती है। बीज बोने के बाद हल्की सिंचाई करें और पौधों की वृद्धि के दौरान आवश्यकतानुसार पानी दें। यह ध्यान रखें कि खेत में पानी जमा न हो, क्योंकि जलजमाव से पौधों की जड़ों को नुकसान हो सकता है। साथ ही, खरपतवार नियंत्रण के लिए समय-समय पर निराई-गुड़ाई करें।
सेम की फसल में कुछ प्रमुख रोग और कीट लग सकते हैं। इन्हें नियंत्रित करना आवश्यक है:
रोग: पत्तियों पर धब्बे (Leaf spot), झुलसा रोग (Blight)
कीट: एफिड्स (Aphids), फल की मक्खी (Fruit fly)
इन रोगों और कीटों से बचाव के लिए जैविक कीटनाशक या उचित दवाओं का छिड़काव समय पर करें।
सेम की फसल बोने के 50-60 दिनों बाद फल आने लगते हैं। फल जब पूरी तरह से विकसित हो जाएं और उनकी लंबाई 12-15 सेंटीमीटर हो, तब उनकी कटाई की जा सकती है। सेम की अच्छी उपज के लिए फलों को समय पर तोड़ना जरूरी होता है, ताकि पौधों पर और फल लग सकें। एक हेक्टेयर खेत से 10-12 टन उपज प्राप्त की जा सकती है, यदि सही तकनीक और देखभाल की जाए।
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सेम में प्रोटीन, विटामिन्स और मिनरल्स की अच्छी मात्रा होती है, जो इसे स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद बनाती है। इसकी खेती से मिट्टी की उर्वरता में भी सुधार होता है, क्योंकि सेम नाइट्रोजन को मिट्टी में बांधने की क्षमता रखती है। बाजार में सेम की अच्छी मांग होती है, जिससे किसानों को आर्थिक लाभ मिलता है।
सेम की खेती एक लाभकारी फसल है जो किसानों को अच्छी उपज और मुनाफा देती है। अगर आप आधुनिक तकनीकों और समय पर देखभाल का पालन करेंगे, तो निश्चित ही आपको बेहतर परिणाम मिलेंगे। सही किस्म का चयन, उचित बुवाई विधि, खाद प्रबंधन, और सिंचाई की तकनीकें आपको उन्नत खेती की ओर ले जाएंगी।
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Youtube video 📷- सेम की खेती
Sem thrives best in a temperature range of 15°C to 30°C. It requires moist soil for proper growth, but it is essential to ensure proper drainage as waterlogging can damage the crop. Sandy loam soil is ideal for sem farming, and the soil pH should be between 6.0 to 7.5 for optimal results.
Selecting the right variety is crucial for better yield and quality. Some popular varieties of sem are:
Pusa Ratna, Pusa Samridhi, Pusa Parvati, Arka Anmol, VL Sem 8.
These varieties offer high yield and are resistant to common diseases.
Time: The best time for sowing sem is during the onset of the monsoon, i.e., June-July. Some varieties can also be sown in October-November.
Method: Proper field preparation is essential before sowing. Plough the field well and level it. The seeds should be sown 2-3 cm deep, and the rows should be spaced 45 to 60 cm apart.
For a good yield, it is important to provide the soil with the right amount of fertilizers. Along with organic manure, the proper balance of nitrogen, phosphorus, and potash is necessary. For sem farming, applying 20-30 kg of nitrogen, 50-60 kg of phosphorus, and 30-40 kg of potash per hectare is recommended.
Balanced irrigation is crucial for sem farming. After sowing, give a light watering to help the seeds germinate. During the growth phase, water as needed, but be cautious of waterlogging, as it can harm the roots. Regular weeding is essential to keep the field free from competition and ensure healthy crop growth.
Some common pests and diseases can affect the sem crop. It’s important to control them effectively:
Diseases: Leaf spot, Blight
Pests: Aphids, Fruit fly
Use organic pesticides or recommended chemicals to control these pests and diseases.
Sem begins to bear fruit 50-60 days after sowing. Harvest the pods when they are fully developed and reach a length of 12-15 cm. Timely harvesting is important to ensure continuous fruiting, which leads to higher yields. With proper care, a hectare of sem can yield 10-12 tons of produce, provided the right techniques are followed.
Sem is rich in proteins, vitamins, and minerals, making it highly beneficial for health. It improves soil fertility by fixing nitrogen in the soil. There is a strong market demand for sem, providing farmers with good income opportunities.
Sem farming is a profitable venture that offers farmers good yields and financial returns. By following modern techniques and ensuring timely care, you can achieve better results. Selecting the right variety, using proper sowing methods, managing nutrients, and applying irrigation techniques will take your farming to the next level.
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