Tauri (Ridge Gourd) Cultivation: A Detailed Guide (तौरी की खेती: संपूर्ण जानकारी)

Tauri, also known as Ridge Gourd, is a popular vegetable cultivated in many parts of Asia. It is highly nutritious and contains essential vitamins and minerals. Ridge gourd is easy to grow and can be cultivated in a variety of climates. This guide provides comprehensive details on tauri cultivation, covering everything from soil preparation to harvesting.

तरोई, जिसे तौरी भी कहा जाता है, एक लोकप्रिय हरी सब्जी है जिसे भारत में विशेष रूप से गर्मियों के मौसम में उगाया जाता है। यह हल्की और पौष्टिक सब्जी है, जो खाने में स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्धक होती है। तरोई की खेती किसानों के लिए एक लाभकारी व्यवसाय है, क्योंकि इसकी मांग हर मौसम में रहती है। इस लेख में हम तरोई की खेती के हर महत्वपूर्ण पहलू पर चर्चा करेंगे...

तरोई की किस्में

तरोई की कई किस्में उपलब्ध हैं, जिन्हें जलवायु और मिट्टी के अनुसार चुना जा सकता है। कुछ प्रमुख किस्में हैं:

1. पूसा चिकनी

2. पूसा नसदार

3. अर्का तौरी

प्रत्येक किस्म की अपनी विशेषताएँ होती हैं, जैसे कि पैदावार, आकार, और रोग प्रतिरोधक क्षमता।

मिट्टी और जलवायु

तरोई की खेती के लिए दोमट या बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है। मिट्टी की जलनिकासी अच्छी होनी चाहिए ताकि पानी का जमाव न हो। तरोई गर्म जलवायु की फसल है और इसके लिए 25 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त होता है। ठंडे क्षेत्रों में भी इसकी खेती की जा सकती है, लेकिन ठंड से इसकी पैदावार प्रभावित हो सकती है।

बीज बोने का समय और तरीका

तरोई की बुआई का सही समय फरवरी से मार्च और जून से जुलाई के बीच होता है। बीजों को 2-3 सेमी गहराई में बोया जाता है और पौधों के बीच 1-1.5 मीटर की दूरी रखनी चाहिए। एक हेक्टेयर क्षेत्र के लिए लगभग 3-4 किलोग्राम बीज पर्याप्त होते हैं। बीज बोने के बाद नियमित सिंचाई जरूरी होती है।

सिंचाई और खाद प्रबंधन

तरोई की फसल को नियमित सिंचाई की आवश्यकता होती है। बुआई के तुरंत बाद पहली सिंचाई और उसके बाद 7-10 दिन के अंतराल पर सिंचाई की जानी चाहिए। फसल की शुरुआत में नाइट्रोजन, फास्फोरस, और पोटाश युक्त उर्वरकों का उपयोग करना लाभदायक होता है। जैविक खाद का उपयोग भी तरोई की अच्छी पैदावार के लिए फायदेमंद होता है।

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रोग और कीट नियंत्रण

तरोई की फसल में कुछ सामान्य रोग और कीट देखे जा सकते हैं, जैसे कि चूर्णिल आसिता (पाउडरी मिल्ड्यू), सफेद मक्खी, और पत्तियों के धब्बे। इनसे बचने के लिए समय-समय पर जैविक या रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग करना चाहिए। फसल चक्र और पौधों की नियमित निगरानी करके भी रोगों और कीटों पर नियंत्रण पाया जा सकता है।

फसल की कटाई और उपज

तरोई की फसल बुआई के लगभग 55-60 दिनों के भीतर तैयार हो जाती है। जब फल पूर्ण रूप से विकसित हो जाएं, लेकिन अधिक पकने से पहले, तब उनकी कटाई करनी चाहिए। कटाई के बाद तरोई को साफ करके बाजार में भेजा जा सकता है। एक हेक्टेयर क्षेत्र से लगभग 100-150 क्विंटल तक की पैदावार हो सकती है।

उपसंहार

तरोई की खेती किसानों के लिए एक लाभकारी व्यवसाय है, बशर्ते सही तकनीकों का पालन किया जाए। मिट्टी की तैयारी से लेकर बुआई, सिंचाई, खाद प्रबंधन, और कीट नियंत्रण तक हर चरण का ध्यान रखना आवश्यक है।

Varieties of Tauri

There are several varieties of ridge gourd cultivated based on region and climate. Some of the most popular varieties include:

1. Pusa Nasdar

2. Pusa Chikni

3. CO-1

4. Arka Sumeet

These varieties vary in terms of growth rate, yield, and disease resistance. Farmers should select the variety that best suits their local conditions.

Soil and Climate Requirements

Ridge gourd grows best in well-drained, sandy loam soils with a pH range of 6.0 to 7.5. It thrives in warm, tropical climates with temperatures ranging between 25°C and 30°C. The crop is sensitive to frost, so it is essential to avoid very cold conditions. Ridge gourd also requires good sunlight for optimal growth.

Sowing Time and Seed Rate

The best time for sowing tauri is during the Kharif season (June to July) or the summer season (February to March). The seeds should be sown at a depth of 2.5 to 3 cm, with a spacing of 1.5 to 2 meters between rows. For effective growth, a seed rate of 2-2.5 kg per acre is recommended.

Land Preparation and Sowing Method

The land should be ploughed deeply 2-3 times and leveled before sowing. Well-decomposed farmyard manure should be incorporated into the soil to improve fertility. Ridge gourd is usually grown on raised beds or mounds to ensure proper drainage. Seeds are either sown directly or seedlings can be transplanted after 3-4 weeks of germination.

Irrigation and Nutrient Management

Regular irrigation is essential for ridge gourd cultivation, particularly during flowering and fruit setting stages. In general, the crop requires watering every 4-5 days in dry seasons. To enhance growth, it is important to apply a balanced dose of nitrogen, phosphorus, and potassium. Around 40 kg of nitrogen, 20 kg of phosphorus, and 20 kg of potassium per acre is recommended. Organic manure can also be applied for better soil health.

Pest and Disease Management

Ridge gourd is susceptible to pests like fruit flies, aphids, and caterpillars, as well as diseases like powdery mildew and downy mildew. For pest control, organic pesticides such as neem oil can be used. Timely application of fungicides and maintaining good field hygiene helps in disease management. Crop rotation and removing infected plants early can also help prevent disease spread.

Harvesting and Yield

Tauri is ready for harvesting within 50-60 days of sowing. The fruits should be harvested while they are still tender and green, as overripe fruits become fibrous and lose their quality. Frequent harvesting, every 3-4 days, ensures that the fruits remain tender. The average yield of ridge gourd is around 8-10 tonnes per acre, depending on the variety and cultivation practices.

Conclusion

Tauri (ridge gourd) cultivation is a profitable venture for farmers, especially in regions with warm climates. By following proper sowing, irrigation, and pest control practices, farmers can achieve high yields and good-quality produce. Ridge gourd is a valuable crop that offers both nutritional and economic benefits, making it an excellent choice for sustainable farming.

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