Mustard Farming: Complete Information and Advanced Techniques (सरसों की खेती: पूरी जानकारी और उन्नत तकनीक)

Mustard farming is widely practiced across most states in India, mainly grown as a Rabi crop. Mustard seeds, oil, and green leaves are used in various ways, making it an important cash crop. In this article, we will discuss mustard farming in detail—covering everything from when and how to sow mustard, preparing the field, to the harvesting process.

सरसों की खेती भारत के अधिकांश राज्यों में होती है और यह मुख्य रूप से रबी फसल के रूप में उगाई जाती है। सरसों का तेल, हरी पत्तियाँ, और उसके बीज कई तरह से उपयोग किए जाते हैं, जिससे यह एक महत्वपूर्ण नकदी फसल बनती है। इस लेख में हम सरसों की खेती पर विस्तार से चर्चा करेंगे—कब और कैसे सरसों बोई जाती है, खेत की तैयारी से लेकर कटाई तक की पूरी प्रक्रिया के बारे में बात करेंगे...

सरसों की खेती का सही समय

सरसों की खेती मुख्यतः ठंडे मौसम में की जाती है, इसे रबी फसल कहा जाता है।

  • बुवाई का समय: सरसों की बुवाई का आदर्श समय अक्टूबर के मध्य से नवंबर के अंत तक होता है।
  • ठंडे तापमान में इसकी वृद्धि बेहतर होती है, और अगर बुवाई सही समय पर की जाए तो उपज भी अधिक मिलती है।

मिट्टी का चयन और खेत की तैयारी

सरसों की खेती के लिए उचित जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है। हालांकि, यह फसल सभी प्रकार की मिट्टियों में उगाई जा सकती है, परंतु उचित देखभाल और पोषण देना आवश्यक होता है।

भूमि की तैयारी: 2-3 बार हल चलाकर खेत को अच्छी तरह से तैयार किया जाता है। मिट्टी को भुरभुरा बनाकर उसमें नमी बरकरार रखना जरूरी होता है।

खाद का उपयोग: जैविक खाद जैसे गोबर की खाद या सड़ी हुई कम्पोस्ट का उपयोग मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए किया जा सकता है। इसके अलावा, 60-70 किलो NPK प्रति हेक्टेयर खेत में मिलाया जा सकता है।

बीज का चयन और बुवाई की विधि

सरसों की अच्छी उपज के लिए उत्तम गुणवत्ता वाले बीज का चयन बहुत महत्वपूर्ण है। कुछ लोकप्रिय सरसों की किस्में हैं: कृष्णा, वरुणा, पीबीएन 21, पीबीएन 22 आदि।

बीज की मात्रा: प्रति हेक्टेयर लगभग 4-5 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।

बुवाई की दूरी: बीजों की बुवाई कतारों में करनी चाहिए, और पंक्तियों के बीच की दूरी 30 से 45 सेंटीमीटर होनी चाहिए। बीजों को 1.5 से 2 सेंटीमीटर की गहराई में बोया जाता है।

सिंचाई की प्रक्रिया

सरसों की फसल को बहुत अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती। 2-3 सिंचाई पर्याप्त होती हैं। पहली सिंचाई बुवाई के 3-4 सप्ताह बाद करनी चाहिए, और दूसरी सिंचाई फूल आने के समय पर करें। ध्यान दें कि पानी का जमाव न हो, क्योंकि इससे फसल को नुकसान हो सकता है।

उर्वरक और पोषक तत्व

सरसों की अच्छी उपज के लिए उचित उर्वरक और पोषक तत्वों की जरूरत होती है। बुवाई से पहले नाइट्रोजन (N), फॉस्फोरस (P), और पोटाश (K) का सही अनुपात में प्रयोग करना चाहिए। प्रति हेक्टेयर लगभग 80-100 किलो नाइट्रोजन, 40-50 किलो फॉस्फोरस, और 40 किलो पोटाश का प्रयोग करना चाहिए। नाइट्रोजन का आधा भाग बुवाई के समय और बाकी फूल आने के समय देना चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण और फसल की सुरक्षा

खरपतवार सरसों की फसल की वृद्धि में बड़ी समस्या पैदा कर सकते हैं। फसल को साफ रखने के लिए निराई-गुड़ाई करना जरूरी होता है।

निराई-गुड़ाई: पहली निराई बुवाई के 20-25 दिन बाद और दूसरी निराई 35-40 दिन बाद करें।

कीट एवं रोग नियंत्रण: सरसों की फसल को बचाने के लिए समय-समय पर कीटनाशक दवाओं का छिड़काव करें। इसके अलावा, फसल को फफूंदी, चूर्णी फफूंद और तना मक्खी से बचाने के लिए उचित देखभाल करें।

फसल की कटाई और उपज

सरसों की फसल कटाई तब की जाती है जब पौधों का रंग पीला पड़ने लगे और बीज पूरी तरह पक जाएं। आमतौर पर जनवरी से मार्च के बीच फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है। कटाई के बाद बीजों को सुखाकर तेल निकाला जाता है। सरसों की उन्नत किस्मों और अच्छी देखभाल के साथ प्रति हेक्टेयर लगभग 10-15 क्विंटल उपज मिल सकती है।

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निष्कर्ष

सरसों की खेती भारतीय कृषि में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। उचित समय पर बुवाई, सही उर्वरक का उपयोग, सिंचाई और देखभाल से सरसों की अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है। इसके अलावा, सरसों के तेल और बीज की बाजार में उच्च मांग के चलते यह किसानों के लिए आर्थिक रूप से फायदेमंद साबित होती है।

Best Time for Mustard Farming

Mustard is primarily grown in the cold season, known as a Rabi crop.The ideal time for sowing mustard is between mid-October and the end of November. Mustard grows best in cool temperatures, and timely sowing ensures better yield.

Soil Selection and Field Preparation

Mustard grows best in well-drained sandy loam soil, but it can be cultivated in almost all soil types with proper care and nourishment.

Field preparation: The field should be plowed 2-3 times to make the soil loose and friable. It is important to retain moisture in the soil.

Fertilizer use: Organic fertilizers such as well-decomposed cow dung or compost can be added to enhance soil fertility. In addition, around 60-70 kg of NPK can be mixed per hectare.

Seed Selection and Sowing Method

Selecting high-quality seeds is crucial for a good mustard yield. Some popular mustard varieties include Krishna, Varuna, PBN 21, PBN 22.

Seed quantity: About 4-5 kg of seeds are required per hectare.

Sowing distance: Seeds should be sown in rows, with a distance of 30 to 45 centimeters between them. The seeds should be placed at a depth of 1.5 to 2 centimeters.

Irrigation Process

Mustard does not require excessive water. 2-3 irrigations are sufficient. The first irrigation should be done 3-4 weeks after sowing, and the second irrigation at the flowering stage. It is important to avoid waterlogging, as it can damage the crop.

Fertilizer and Nutrient Management

Proper fertilizer and nutrient management are essential for a healthy mustard yield. A balanced application of Nitrogen (N), Phosphorus (P), and Potash (K) should be done before sowing. Apply about 80-100 kg of nitrogen, 40-50 kg of phosphorus, and 40 kg of potash per hectare. Half of the nitrogen should be applied at sowing and the other half during the flowering stage.

Weed Control and Crop Protection

Weeds can significantly affect mustard crop growth. Regular weeding and hoeing are important to keep the field clean. The first weeding should be done 20-25 days after sowing, and the second one after 35-40 days. Pest and disease control: Mustard crops need protection from pests like aphids and diseases such as powdery mildew. Regular pesticide spraying is recommended to keep the crop healthy.

Harvesting and Yield

Mustard crops should be harvested when the plants turn yellow, and the seeds are fully mature. Mustard crops are usually ready for harvesting between January and March. After harvesting, the seeds should be dried before extracting the oil. With good care and the right techniques, mustard can yield around 10-15 quintals per hectare.

Conclusion

Mustard farming holds a vital place in Indian agriculture. Timely sowing, proper fertilization, irrigation, and care can result in a healthy yield. Moreover, due to the high demand for mustard oil and seeds, it is a profitable crop for farmers.

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